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शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मैं ... मेरी चाह ...!

उन सब की  फाँसी 
जिन लोगों ने 
कर तो दी 
मेरी अस्मत तार तार 
मेरी पीडाओं को 
मेरी  इस त्रासदी को 
मेरे टुकडे टुकडे जिस्म को 
फिर से जोड़ पायेंगी  ?
मुमकिन है  कल मैं न रहूँ   
और ये वहशी फिर 
सड़क पर 
भूखे भेड़िये  से 
और शिकार  खोजेंगे 
लेकिन मेरी  मौत के बाद  भी 
ये जंग जारी रखनी होगी 
 मेरी मौत या शहादत 
इस  पर 
विराम तो नहीं लगा सकती 
फिर भी  
मेरे बाद भी 
सैकड़ों, हजारों और लाखों 
बेटियां और बहनें इस धरती पर   
शेष रहेंगी . 
लेकिन
उन्हें बचा लेना ,
ऐसी कोई  घटना फिर न हो,
ऐसे  नराधमों को 
ऐसा दण्ड देना 
कि कोई और न 
मेरी तरह  से फिर बलिदान हो।
इनकी हवस का  शिकार  हो। 
अभी  बाकी है 
जिजीविषा मेरे मन में 
अब जियूंगी भी  
पर  कैसे और कैसे ?
न मैं जानती हूँ ,
और न वे 
जो मुझे बचाने में
दिन रात जुटे हैं .
मैं रहूँ न रहूँ ,
फिर किसी को 
जिजीविषा के रहते 
 मरना न पड़े ,
 ख़त्म हो सके 
गर ये कुकृत्य 
तो फिर मेरी  शहादत 
एक नयी सुबह के लिए 
याद की  जायेगी। 
नहीं  चाहती कि 
गीता ,  अरुणा के साथ मैं भी 
आहुति की समिधा  बन कर 
यज्ञ  को  पूरा  न कर पाऊं .
समिधा मैं  बन जाऊं 
यज्ञ तुम लोगों को पूरा करना है .
 करोगे न , फिर वादा करो 
अब कोई नहीं  मेरी तरह से।


शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

आप ?

कीचड़ में पत्थर फ़ेंक कर भी 
खुद को पाक कह रहे हैं आप ?

दूसरों पर अंगुली उठाये हुए देखा  ,
तो फिर निर्दोष भी कब रहे हैं आप ?

बहुत आसन है तोहमत लगा देना 
बेकुसूर इससे भी कब रहे हैं आप ? 

वे गुनाह किये थे ये  किस्मत में था ,
गुनाहगार बताकर क्या कर रहे हैं आप ? 

बहुत गम है दुनियां में रोने के लिए 
दूसरों को ग़मगीन क्यों कर रहे हैं आप? 

लफ्जों के तीर जहरीले बहुत होते हैं,
दूसरों को घायल क्यों कर रहे हैं आप ?

कुछ तो ऐसा कीजिये जिन्दगी में 
सुकून औरों को जैसे दे रहे हों आप  ?

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

हाईकू !

ज्ञानशून्य है 
आरक्षण की माया 
खुद देख लें।
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अब मिलती 
मानवता धरा पे 
दम तोड़ती .
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आरक्षण दे 
संविधान है पंगु 
वे शक्तिमान .
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कुछ यथार्थ 
इतने कटु होंगे 
फंसे गले में 
*******
ये बचपन 
रस्सियों के सहारे 
झूल रहा है .
*******
पेट के लिए 
गिरवी बचपन  
भूखा सो गया . 
********
भीख माँगते 
बाप बेटे बेटियां 
धंधा जो है न 
*******

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

हाईकू

 निरंकुश वे 
छटपटाते हम 
हल कहाँ है?
********
फांसी का फन्दा 
एक की गर्दन में 
बाकी को तो दें । 
********
 गोद में कन्या 
दरवाजे बंद हैं 
जाए वो कहाँ? 
*******
घरेलू हिंसा 
हर घर में जिन्दा 
चीख सुनें तो .
*******
आधी आबादी 
आज भी आधी जिए 
पूरी  न होगी   .
*******  
अहंकार है 
फिर विद्वता कहाँ? 
सोचो तो जरा.  
********
 माथे चन्दन 
गले में धारे हार
पंडित बने .
*********


शनिवार, 3 नवंबर 2012

ईश्वर बनाम माँ !





माँ ओ मेरी माँ 
कल मैंने देखा 
एक सपना 
तब जाना कि 
तेरा ये रूप क्यों 
मुझे ईश्वर सा लगता है .
सपने में 
ईश्वर आये 
अपने वृहत स्वरूप में 
उनके उन रूपों में 
माँ तेरा भी चेहरा था ,
तुझे देख कर 
मैंने तब ईश्वर से ये पूछा 
मेरी माँ तुममें कैसे है ? 
वे बोले 
सृष्टि मैं करता हूँ ,
सृष्टि धरा पर 
ये माँ करती है ,
अपना अंश 
उसको देकर मैं 
माँ बनाया करता हूँ 
फिर वो आकर धरा पर 
जननी बन 
मेरा धर्म निभाती है ,
मैं आकर 
हर जीव को 
धरती पर पाल नहीं सकता हूँ 
अपने अंश रूप से 
तुम सब को 
पाला करता हूँ। 
वो जन्म देती है,
पालती है ,
संस्कार देकर 
एक बेहतर मानव 
बनाती है .
इसी लिए धरती पर 
मैं उसमें ही रहता हूँ 
वो मुझेमें दिखलाई देती है। 
तब जाना माँ 
कि तू ऐसी क्यों हैं?
माँ 
तू ही  मेरी 
जननी , पालक , शिक्षक 
औ' ईश्वर रूप 
तुम्हें नमन करता हूँ। 
तुम्हें नमन करता हूँ।

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

श्मशान तक !

    हर इंसान वाकिफ  है जिन्दगी की हकीकत से
        जिन्दगी के रास्ते आखिर श्मशान तक जाते हैं .

आता तो है हर इंसान इस  दुनियां एक तरह से 
जिन्दगी में अपनी फिर क्यों भटक जाते हैं।  

ऐसा नहीं कि वे वाकिफ न हो अंजाम से अपने 
फिर क्यों दौलत के लिए दलदल में फँस जाते हैं। 

रिश्तों और जज्बातों को इस तरह दुत्कार दिया 
जब याद आये अकेले में तो वे दम तोड़ जाते हैं।

गर फरिश्ते न बनें इंसान तो बने रहिये फिर भी 
इंसानों की मैयत पर ही दो अश्क गिराए जाते हैं। 

 ऐसे ही न जाने कितने श्मशान तक जाने के लिए 
आखिर में चार कन्धों के सहारे को तरस जाते हैं।

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

हाइकू

 राजनीति में
रसूख देखना है
गाड़ी को देखो
*******
धरा कहती
इंसान से रुक जा
अभी जीना है।
*******
रिश्तों में अभी
रहने दो गरमी
खून से जुड़ी ।
*******
सपने टूटे
टुकड़ों को सहेजा
आंसूं चू पड़े। 
******
सपने मुझे 
देखने का हक था 
मर्जी उनकी। 
*******
बलात्कार में 
कलंक नारी पे है 
वे हैं निर्दोष। 
*******
नारी के लिए 
विवाह की मर्यादा 
शिरोधार्य है। 
*******
सात फेरे है 
सिर्फ नारी के लिए 
नर आजाद . 
*******

शनिवार, 29 सितंबर 2012

प्रेम एक अहसास !

प्रेम 
दिखाना नहीं पड़ता 
हमने तो खोले 
अपने हृदय के द्वार 
बैरी का भूल कर बैर ,
बढे आगे गले लगाने को 
पर ये क्या ? 
वे दिल के द्वार से 
बगल में 
नफरत का हथियार लिए 
मुस्कराते आ गए .
वे समझे 
चेहरे की मुस्कान ही 
हम हकीकत समझ  लेंगे 
पर 
प्रेम वो अहसास है 
जिसे 
दिखाना नहीं होता 
दिल के द्वार पर दस्तक होती है 
बाहर कौन खड़ा है?
नफरत या उल्फत 
वो समझ सकता है। 
फिर अहसास का भुलावा 
कोई दे ही नहीं सकता .
हाँ जानबूझ  कर 
अनजान बने
मापते रहे 
उनके प्यार की गहराई 
उसमें तो नफरत पैबस्त थी,
नजर आ गयी .
जुबान, नज़रें , और दिल
एक साथ जुड़े हैं,
दिल की नफरत 
जुबान पर न सही 
आखों में कहीं 
नजर आ ही जाती है। 
वे समझे धोखा दे दिया।
लेकिन नहीं धोखा हम खाए नहीं,
वे धोखा देने का 
नाटक कर गए 
और हम 
उनकी हकीकत से 
वाकिफ होकर 
सतर्कता से 
उनकी नफरत की इबारत पढ़ गए।
 

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

त्रिशंकु सा जीवन !

महान कौन है?
वो नहीं 
जो ऊँचाइयों तक जाकर 
फिर पलट कर 
नीचे नहीं देखता .
या फिर 
वो जो ऊपर 
जाकर भी 
अपनी जमीन से 
नाता नहीं तोड़ता है। 
अपने जीवन के 
उन पलों को 
जो अहसास कुछ करते हैं ,
फिर कुछ पाकर 
अगर भूल जाते हैं 
तो फिर 
यथार्थ को झुठलाने जैसा हुआ।
जहाँ से चले थे
वो मुकाम 
कभी भूलते नहीं ,
अपनी जड़ों से 
अलग होकर 
शाखें कभी पनप नहीं सकती .
फिर इन्सान कैसे 
अपनी जमीन से कट कर 
आसमान में जी सकता है। 
जीना भी चाहे तो 
फिर आसमान  उसको मिलता नहीं 
औ'
जमीं उसकी रहती नहीं। 
ये त्रिशंकु सा जीवन 
आखिर में उसकी नियति 
बन जाती है।

बुधवार, 26 सितंबर 2012

हाइकू !

शब्दों के तीर 
छलनी कर गए 
को जाने पीर .
********
प्रकृति प्रेम 
बातों में नहीं कहो 
कर्मों से बोलो .
********
नौका का हश्र 
नदी पार कराये 
खुद पानी में .
********
गंगा क्यों  रोये ?
इतने पाप धोये 
मैली हो गयी .
*********
जल से प्राण 
मर्म को समझना 
अभी जल्दी है। 
*********
हर पग पे  
वहशी खड़े हैं तो 
बचोगी कैसे ?
*********
कीमतें तय 
क्या चाहिए तुमको ?
मुंह तो खोलो। 
*********
आत्मा रोती  है  
उनके कटाक्षों से 
कोई दंड है? 
*********
बेलगाम हैं 
सभ्यता हार गयी 
दोषी कौन है? 
**********

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

माँ एक अहसास !

 
चित्र गूगल के साभार 
माँ
एक भाव
एक अहसास है,
वह अपने अंश से
आत्मा से जुड़ी 
उसकी हर सांस से जुड़ी 
जैसे गर्भ में रखते समय 
उसके हर करवट और 
हर धड़कन को सुनकर 
कितना उत्साहित होती है।
फिर जिसे जन्म देती है ,
तो सीने से लगा कर 
उसकी गर्माहट से 
अपने गर्भकाल की 
और प्रसव पीड़ा को 
भूल जाती है।
कहीं दूर से ही सही 
अपने अंश की 
कांपती आवाज 
या फिर उसकी भीगी आंखों का 
एक उदास अहसास 
उसके अंतर को 
हिला ही तो  देता है।
फिर कैसे कोई माँ 
अपने अंश को 
एक कपडे में लपेट कर 
कूड़े के ढेर पर फ़ेंक सकती है।
वो यतीम तो नहीं होता 
जिसने भी फेंका होगा
कोई अपना ही होगा
फिर 
किसी अपने की आत्मा 
इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है?
क्या माँ और अपनो के अहसास 
मरने भी लगे हैं, 
या फिर औरों की आँख की किरकिरी को 
पालने और आँचल की छाँव देने का 
साहस कहीं खो गया? 
माँ का अहसास कभी मरता तो नहीं,
फिर क्या हुआ ?
फिर क्या हुआ? 
सड़क पर पड़ी 
बच्ची की लाश पूछ रही है,
इसका उत्तर कौन देगा ?
समाज?
परिवार ?
माँ ?
या फिर 
वो आत्मा जो चली गयी .

सोमवार, 17 सितंबर 2012

राही अकेला !


 
चित्र गूगल के साभार 


एक दीप लिए आशा का
अनजाने से  रास्तों पर 
बिना सहारे  वो 
चल ही तो पड़ी है।
वाकिफ नहीं है ,
यहाँ के काँटों और रोड़ों से 
नंगे पाँव चली है।
दीप भरे 
ह्रदय के स्नेह से 
आंधी या तूफानों से 
डर  नहीं लगता उसको 
न स्नेह कम होगा 
न दीप कभी बुझेगा .
रास्ता किसको दिखने चली है?
ये जब पूछा उससे 
तो बोली - 
'पता नहीं कितने बेटे, भाई और काका 
अँधेरे में भटक रहे हैं,
अनजाने और अँधेरे में 
खुद को ही कुंएं में धकेल रहे हैं।
सोचा उन्हें राह दिखा दू,
पता नहीं कब चल दूं?
किसी बेटे भाई और काका की 
गोली, लाठी या बम 
मेरा सफर न पूरा कर दे,
भटकूंगी फिर भी 
सो जाने से पहले ये काम कर लूं 
फिर न रही तो क्या 
उनके रास्ते  तो बदल जायेंगे 
और फिर 
कोई और दीप जलाये आएगा 
ऐसे ही रास्ते दिखायेगा 
होगा कोई मानव ही 
जो मानव को दानव से 
महामानव बनाएगा। '

शनिवार, 15 सितंबर 2012

यदा यदा हि....!

अधर्म , असत्य और अनाचार 
कभी स्वीकार्य नहीं होंगे,
युग के बदलने के साथ 
परिभाषाएं बदल गयीं।
गेरुआ वस्त्र अब 
तप , सदाचार औ' सत्य 
का प्रतीक नहीं रहे।
कल तक रची जाती थी 
महाभारत और लाक्षागृह की  
नींव के बाद 
द्यूतक्रीडा जैसे छल रचे गए।
गीता रची गयी ,
कृष्ण ने अर्जुन के गांडीव में 
शक्ति का संचार कर 
अधर्म के नाश की
भूमिका रची।
आज सिर्फ द्यूत क्रीड़ायें ही बची हैं,
बिना इसके भी 
द्रोपदी लज्जित की जाती है .
नारी की मर्यादा का हरण 
करने वाले अब सिर्फ 
दुर्योधन और दुशासन ही 
नहीं बचे हैं। 
उनकी संतति भी तैयार है .
धृतराष्ट्र  के सौ पुत्रों की संतति .
अब कृष्ण तुम्हें 
क्यों नहीं सुनाई  देती है 
हजारों अबलाओं की पुकार 
चीर हरण के बाद 
मान हरण भी हो रहा है।
कब किसी अर्जुन से कहोगे 
कि 

 अधर्म के लिए चढ़ाओ प्रत्यंचा 

धर्म की रक्षा में 
कोई पितामह,  भ्राता या सखा नहीं 
अधर्म का संहार करो 
धर्म से  पतित 
संहार योग्य है।
धर्म तो धर्म है 
कभी असत्य नहीं हो सकता 
इसके पालन में मानव धर्म 
सत्य धर्म, कृत्य धर्म 
सभी कुछ है।
मोह मिटाकर 
सत्य से साक्षात्कार ही 
इस धरा का जीवन है।
तभी  अधर्म 
तुम्हारे हाथ से 
मेरे साथ  होकर 
इस धरा से मिट पायेगा 




रविवार, 2 सितंबर 2012

हाइकू !

आज के हाइकू है प्रदूषण पर  आधारित  .................. 

पानी का रंग
काला, पीला या हरा
कौन सा पियें।
********
टॉवर खड़े
घर की छतों पर
रईस हुए।
********
अपनी नहीं
तो दूसरों की साँसे
गिरवी रखीं।
********
तरंगे फैली
तरंगित हृद्गति
खामोश हुई।
********
बहरे हुए
तेज ध्वनि खा गयी
कान हमारे .
*******
ये शहर है
सांस लेना दूभर
विष भरा है.
********
 तराजू तौल
मौत बेचते हैं वे
पैसे लेकर .
********
  

बुधवार, 22 अगस्त 2012

दूसरा आँचल .!


 



किसी ने 
चलती ट्रेन से 
दुधमुंही को फेंका 
मुंह के बल गिरी 
वो कोमल सी नवजात 
बड़ी सख्त जान  थी .
मरी तब भी नहीं 
शायद इस दुनिया से लड़ने का 
पूर्वाभास उसकी आत्मा को हो चुका था.
किसी और आँचल में 
वक़्त ने उसको डाल दिया।
रुई के फाहों से 
सूखे पपड़ाये होंठों को खोल कर 
चंद  बूँदें दूध की डाली।
फिर गर्म पानी से धोये घाव उसके 
और फिर सीने से लगा कर सुला दिया। 
एक आँचल में फेंका 
दूसरे ने फैला कर 
समेट  लिया .
ऐसे ही कितनी जानें ?
दम तोड़ देती हैं ,
और कितनी 
पा जाती हैं दूसरा आँचल .
फिर एक बार 
प्रश्न उठा है,
आखिर कब तक ?
इस तरह से 
एक जननी भावी जननी को 
इस दुनियां में आते ही 
ख़त्म करने के प्रयास में 
असफल होती रहेगी। 
क्योंकि सृष्टि को 
अभी चलते रहना है 
तू न सही कोई और सही 
इन भावी जननियों को 
कोई तो आँचल में 
छिपा कर पलेगा .
इस धरती पर 
इसी तरह से 
बार बार 
तिरस्कार के बाद भी 
आती रहेंगी और अपने नाम का 
परचम यही लहराती रहेंगी।