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बुधवार, 13 जनवरी 2010

खारे पानी की कीमत!

वह सर पर कपड़ा रखे
ईंटें ढो रही थी,
पास ही कहीं
दुधमुहीं बच्ची सो रही थी।
आवाजें कारीगरों की
जल्दी करो
जल्दी करो
बराबर आ रही थीं।
सहसा सोती बच्ची
रोने लगी।
शायद भूखी होगी।
आँचल से दूध
टप-टप कर बहने लगा।
पर
बेटी को उठा नहीं सकती
पेट उसका भर नहीं सकती
पैसे जो कट जायेंगे।
बड़ी मिन्नतों के बाद
बच्ची को लाने की अनुमति मिली है।
जो छुआ तो
मालिकों के मुंह ही
खुल जायेंगे।
ये खून-पसीने के
हिसाब से नहीं
शरीर से गिरते
खारे पानी के पैसे देते हैं।
उसका तो
ये खारा पानी
और भी अधिक बहता है।
उसके साथ रोती हुई बच्ची के आंसूं
और माँ के आंसूं
दोनों की कीमत
कभी नहीं गिनी जाती।
बस बहते हुए पसीने
की
धारों के बदले
दो रोटी भर की
कीमत मिलती है.